पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३६ संत-काव्य है, फिर भी इनकी रचनाओं के विषय तथा लक्ष्य से इन्हें संत कहना ही अधिक उपयुक्त है । अध्यात्म योग (१) बिरहिनी मंदिर दियन बार टेक।। बिन बाती बिन तेल जुगति सों, बिन दीपक उजियार ५१। प्रान पिथा मेरे गृह आयोरचिपचि सेज सवार 1२५ सुखमन सेज परमतत रहिया, पिय निर्णान निरकार ३। गावह री मिलि आनंद संगलयारे मिलि के यार ।।४। (१) संदिर घट व शरोर में हो। जुगति सों =साधना की युक्ति से। सुखमन=सुषुम्ना नाड़ी। (२) हमारे एक यलह पिय ध्यारा है ।टेक। घट घष्ट नूर मुहम्मद साहब, जाका सकल पसारा है ।१॥ चौदह तबक जाकी रसनाईझिलमिलि जोति सितारा है ।२t वे नमून बेचून अकेलाहिंदु तुरुक से स्यारा है ।भ३।। सोइ दरबेस दरस निज पायड़े, सोइ मुसलम सारा है ।४। नार्वे में जाय मएं नह जीदे, यारी यर हमारा है ५। (२) सबक =लोक : रुसनाई=रोशनी, प्रकाश। बेनमूने =अनुपम . इन तखंड अदृश्य ,. (३) झिलमिल झिलमिल बरस तू , नूर जहूर सदा भरपूरा ५१। रुनझुन रुनझुन अनहद बाजे, भंवर गुजर गगन चढ़ि गाजे 1२। रिमझिम रिमझिम बरसे मोतो, भयो प्रकाश निरंतर जोती है ।