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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४१०

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संध्ययुग (उत्तरार्द्ध ) ३७७ निरमल निरमल निरमल नामाकह या तहें लियो बिनामा है।४। नूर जहूर==प्रकट ज्योति। विहंगममार्ग (४) जगी जाति जग कसाव 1 क।। सुख मना पर बैठेि आासनसहज ध्यान लगाव 1१। दू ब्ठि समकर सनत सोआरो, झापा सेष्टि उड़ाव १२।। प्रगष्ठ जोति प्रकार अनुभव, सबद सोने गाव 1३। छोड़ेि मठ को चलहु जोगी, बिना पर उड़ जाव है।४है। यारी है यह मत विहंगसअगम चढ़ि फल खाव ५। सोओो =स्थिर हो जानो। उड़ाव =नष्ट कर दो। मत विहंगम बिगम मार्ग की साधना। परम पद (५) उडुउडु रे विहंगम चहू, अकास टे। जई नहि चंद जू र निस बासरसबा अगमपुर अगस वास से १। देखें उरथ अगाध निरंतर, रथ सोक ह जल के ग्रास ११२। कह यारी है बधिक फांस नहफल पायो जगमग प्रकार 1३। (५) गाध : अपरिपेय परमतत्व। कचित्त अधरे को हाथी हरि हाथ जाको जैसो अयो बूझो जिन जै सो तिन तैसोई बना है। १। टकाटोरी दिन रैन, हिये हूं के फूटे नैन अधर को प्रारसी में कहा दरसाथो है।२। मू ल को खबरि नाहि जासो यह भयो सव, दू ल को बिसारि भोंस डा अरुझायो है ।३ ॥ आपनो सरूप रूप आयु मांहि देखें नहि , कहै यारी गांधरे ने हाथी कैसो पायो है ।