पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४१२

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अध्ययुग (उत्तरढ) ३te बाबा धरनीदास बाबा धरनीदास के जन्मकाल वा मरणकाल की निश्चित तिथियों. का पता नहीं चलता। उनके प्रेमप्रगसकी कुछ पंक्तियों द्वारा इतना ही बिदित होता है कि ०१७१३ में उन्होंने वैराग्य का वेश. धारण किया था। इस प्रसंग के अनुसार विचार करने पर, उनके. अनयायियों द्वारा बतलाया गया उनका जन्मकाल, सं ०१६३२. , बहुत पहले जाता हुआ जान पड़ता है । जो हो, केवल सं० १७१३ के. आधार पर हम इतना कह सकते हैं कि उनका जोवनकाल विक्रम की. सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम चरण से लेकर उसकी अठारहवीं के संभ- बतः तृतीय चरण तक रहा होगा । ये छपरा जिले के सांझी गांव में रहने वाले एक कायस्थ परिवार में उत्पन्न हुए थे और अपने जीवन के पूर्व में वहीं के किसी जिमीदार के यहां लिखने-पढ़ने की नौकरी करते थे । संe१७१३ में किसी दिन अपने पिता का देहांत हो जाने पर उनके हृदय में वैराय का भाव जागृत हो गया और उन्होंने नौकरी छोड़ दी ! तब से वे कुछ दिनों तक किसी सच्चे गुरु की खोज में भटकते फिरे अरअंत में, पातेपुर जि० मुफ्फरपुर) के स्वामी विनोदानंद से दीक्षित हो गए । स्वामी विनोदानंद को उन्होंने स्वामी रामानंद की शिष्य परंपरा में गिनाया है और उनका मृत्युकाल सं ० १७३९दिया है । अपने गुरु के यहां से लौटकर फिर वे अपने जन्म स्थान के ही निकट कुटी बनाकर, भजनभाव में लीन रहा करते थे अर वहीं पर गंगास्नान करते समय उन्होंने समाधि ले ली। बाबा धरनीदास एक पहुंचे हुए संत थे और उनकी रचनाओं द्वारा उनकी गंभीर साधना का परिचय मिलता है ! इनकी रचनाओं में शब्द प्रकाश, प्रेम प्रगास’ तथा ‘रतभावली’ प्रसिद्ध है किंतु वे अभी तक अप्रकाशित हैं । उनकी चुनी हुई कुछ बानियों का एक संग्रह