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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४१६

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मध्ययुग (उत्तर'ल ) ४० ३ G धरनी मन मानो इक ब्रांड। सो प्रभु जीवो में मरिजार्ड ४३ प्रीतम दुगत (७) बहुत दिन यि बसल बिदेसा। श्रा सुनल निज अवन संदेसा ११है चित्त चितसरिया में लिहलों लिखाई। हृदय कमल धल दियना लेसाई ।२। प्रेम पग तह घइलों बिछाई। नखसिख सहल सिगार बनाई है । सन हित असम बिहल चलाई। नयम धइल वोड डुआरा बसाई ।।४। धरनी वनि पलपल अकुलाई । बिनु पिया जिवन अक्षारथ जाई 1५॥ चितसरया=चित्रशाला । वियना लेसाई== दीपक जला कर । मन . .. चलाई=मन को अगवानी के लिए भेज दिया। हरिरस की मादकता (८) हरिजन वा मद के मतवारे। जो मद बिना काठ बिनु भाठी, बिनु अगिनिहि उदगारे ११ बास अकास घराघर भीतर, बंद झरे झलकारे । चमकत चंद आनंद बढ़ो जिब, सब्द सघन निरुबारे 1२है बिनु कर धरे बिना मु ख चाखेबिनहि सियाले हारे। साखन स्यार सिंह को पौरुषउत्थ गजेंद बिहारे 1३ कोटि उपाय करे जो कोई, असल न होत उतारे। शेरनी को अलमस्त दिवानेसोढ़ सिरताज हमारे १.४। उदगारे -चूकर तयार होता है । ताखन -तत् क्षण पीते ही पीते । आस्थ