पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४१८

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अंधयुग (उत्तराई) ४० हैं रुखवा ==खूक्ष, संतारतरु। साझमझोर-=बीचोबीच है औभाकार = झादि की किझोर। उपदेश (११) सुमिरो हरि नामह बौरे टेका। चाहूं वाहि चल चित चंचलमूलमता गहि निस्चल कौरे 1१। पांचहु ते परिवं करु प्रानी, काहे के परत पचीस के भरे। ज लगि निशुन पंथ न सू, कल कहा महि मंडल रे ।२है। सब्द अनाहद लखि नह , चारो पन चलि ऐसहि गौरे। उयों तेलो को बैल बेचारा, घर्राह में कोस पचासक भरे 1३। बया धरम नह साधु की सेवाकाहे के सो जनसे घर चौरे । धरनीदास तालु बलिहारीनूड तज्यो जिन सांचहि धौरे ।४। चहुचाहि-=पूमते च से भी अधिकककर लो। गौ=बीत गए। भ=हो गए। धौ=ग्रहण कर अपना लिया। बही (१२) राम रमैया भजि लेह हो, जतें जनम मरन मिटि जाय ।टेक।। सहर बसे एक चौहा हो, एके हाट परवान । लाही हाट के बानियां हो, बनिज न भाबत प्रान ।।१। लीनि तरे ए ऊपरे हो, बीच बहू दरियाब। कोइ कोई गुरु राम अरे हो, सुरति सचे भाव १२। लीनि लोक तीनि देवता हो, सो जाने सब कोय। चौथे पद परिी भई हो, सो जन बिरले कोय 1३है। सोइ जोगी सोइ पंडित हो, सइ बैरागी राव। जो एहि पदह बिलोइथा हो, धरनी धरे ताको पाब ५४। तीनि. .. दरियाध=त्रिगुणमयी सृष्टि तथा परम पद के बीच महान अंतर दीख पड़ता है । बिलोइयाः - मथन कर लिया।