४ ० संतकाव्य एक बार फिर इन्हें अपने पहले काम पर नियुक्त कर दिया । किंतु अब ये कुछ और हो गए थे । इस कारण एक दिन हलवाही करते समय में अचानक रोड पर बैठ कर ध्यानस्थ हो गए और मालिक ने इन्हें ऐसी स्थिति में पाकर जब ग्रुद्ध हो इन्हें धक्के मार कर गिरा देना चाहा तो इनके हाथ से दही छलक पड़ा। मालिक के पूछने पर पता चला कि ये, ध्यान में मग्न हुए ही, किन्हीं संतों को भोजन करा रहे थे और अब दहो परसने ही जा रहे थे कि इन्हें चोट लगी । बुलाकी राम के इस कथन से प्रभावित हो इनके मालिक इनके चरणों पर गिर पड़े और इनके शिष्य भी हो गए। तब से ये सदा बूला साहब के नान से ही प्रसिद्ध रहे और इनका काम जंगल की एक कुटो में रह कर सत्संग कराना हो गया । इनका जन्म सं० १६८९ में हुआ था और इनका देहांत सं० १७६६ में ७७ वर्षों की आयु पाकर आ । इनके जीवन की शेष घटानाओं का हाल कुछ भी नहीं मिलता। किंतु इनकी उपलब्ध रचनाओं को देखने से पता चलता है कि ये एक उच्चकोटि के साधक रह चुके होंगे और इनकी आध्यात्मिक पहुंच भी बहुत गहरी रही होगी। इनकी रचनाओं का एक संग्रह शब्दसार’ नाम से बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग द्वारा प्रकाशित हो चुका है । इसके कुछ अन्य पद आदि ‘महात्माओं को बाणी’ में मिलते हैं । जिनसे इनकी प्रेमविह्वलता तथा रहस्य-ज्ञान का अच्छा परिचय मिल जाता है । इनकी भाषा साबारण है तथा इनकी पंक्तियों में पद- लालित्य का भी अभाव है । फिर भी उनके विषय की गंभीरता एवं भेद के साथ घनिष्ट संजय के परिचायक इनके वजों द्वारा उनका महत्व बहुत कुछ बढ़ जाता है और उन्हें पढ़ने को और प्रवृत हो जाना पड़ता है ।
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