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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४३

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संत-काव्य

कहा है कि उसकी जानकारी स्वानुभूति की कोटि में आ जाती है जिसका ठीक-ठीक वर्णन करना, भाषा जैसे सीमित भाध्यम के द्वारा कभी संभव नहीं कहा जा सकता। फिर भी इन्होंने उसके स्पष्टीकरण में अपनी अनेक पंक्तियाँ रच डाली हैं और उनके द्वारा हम उसे अवगत कराने के बार-बार प्रयत्न किये हैं। संतों की कृतियों में इस प्रकार का किया गया विस्तार हमें अन्य विषयों के संबंध में भी बहुत अधिक मिलता है और कभी-कभी उनकी पुनरुक्तियाँ भी दीख पड़ती हैं। इस प्रकार संत-साहित्य का कलेवर न केवल अपने अनेक रचयिताओं तथा उनकी विविध रचनाओं के ही कारण बढ़ा है, अपितु इसके लिए बहुत अंशों में संतों की उक्त प्रकार की प्रवृत्ति भी उत्तरदायी है।

संत साहित्य की अधिक वृद्धि का एक अन्य प्रमुख कारण उसमें सम्मिलित की जाने वाली सांप्रदायिक रचनाओं की बड़ी संख्या भी कही जा सकती हैं। संतों के नाम पर चलने वाले पंथों के अनुयायियों में उंनके मूलप्रवर्तकों को ईश्वरीय महत्व दिया है और उनके संबंध में पौराणिक पद्धति के अनुसार भिन्न-भिन्न कथाओं की सृष्टि कर डाली है। उन्होंने विश्व की सृष्टि तथा उसके विकास की भी कल्पना की है। इस विषय पर लिखे गए ग्रंथों में, प्रसिद्ध पौराणिक देवताओं के विविध प्रसंगों की अवतारणा की है। उन्होंने, इसी प्रकार, 'अमरपुर' अथवा 'संतदेश' जैसे कुछ अलौकिक प्रदेशों के भी वर्णन किये हैं। पौराणिक देवताओं के साथ अपने आदर्श संतों की बातचीत करायी है। कभी-कभी ऐसी अर्द्धदार्शनिक रचनाओं को भी प्रस्तुत किया है जिनमें संतमत की अनेक बातें रूपकों द्वारा बतलायी गई हैं। उक्त प्रकार की रचनाओं में उन्होंने अपनी कल्पना से इतना अधिक काम लिया है कि उनमें अलौकिक चित्रों की भरमार सी हो गई है। ऐसे लेखकों की कुछ रचनाएँ संतमत की प्रमुख बातों की