पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४४०

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मध्ययुग (उत्तरार्द्ध) ४२७ संत जगजीवन दास (सतनामी) जगजीवन साहब का जन्म बा को जिले के सरदहा नामक गांव में, कोटवा में दो को को द्र से पर, ए क़ क्षत्रिय कुल में हुआ। था। ये एक चंदेल ठाकुर थे और अपने बालपन में गाय तथा भैंस चराया करते थे 1 प्रसिद्ध है कि उसी समय एक दिन दो साधुओं ने आकर उनसे अपनी चिलन चढ़ाने के लिए कुछ आग मांगी. किंतु बालक आग के साथसाथ उनके पोने के लिए कुछ दूद्ध भी लेता आया । साधु बच्चे का स्वभाव देख कर, उस पर बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद के रूप में उसकी कलाइयों पर उन्होंने बागे बां: दिये । कहते हैं कि बालक जगजोवन ने उसी समय से साधु-सेवा एव सत्संग करना आरंभ किया और अपनी युवावस्था तक आतेआते उसने अपने आध्यात्मिक अभ्यास में भी पर्याप्त उन्नति कर लो। उक्त साधुओं में से एक बूला साहब सस जाते है, दूसरे के लिए गोविंद साहब का अनुमान किया जाता है । जगजीवन दास की त्र भो इसी अधार पर के संतों में की जाती है और उसकी वंशावली में उनका नाम भो दोख पड़ता है । परंतु कुछ लोगों का यह भी अनुमान है कि वे किसी विश्वेश्वर पुरी के शिष्य थे जो काशो के निवासी थे। इस विश्वार के अनुसा९वे एक स्वतंत्र संप्रदाय के प्रत्र दारक माने जाते हैं कि ये सतनामो संप्रदाय कहा जाता है और वे उसको कोटवां शाखा के प्रवर्तक भी स जाते हैं। जगजोवन दास का जन्म सं० १७२७ माना जाता है और उनके देहांत का समय स० १८१८ में ठहराया जाता है । जगजीवन साहब ने अंत तक गहस्थ्य जीवन यतोत किया था । और सरदहा छोड़े और पीछे कोटवां में रहने लगे थे । इ के नाम से ७ पुस्तकें प्रसिद्ध हैं जिनमें से इनका केवल ‘शब्द सागर' मात्र बल वेडियर में त दो से भागों में प्रकाशित हुआ है । इनको र सनाओं से पता