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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४४३

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संत-काव्य

आधुक अपने को । कौन .. . निकरिये =कौन से उपाय कहं जिनसे संसार के बंधनों से मुक्त हो स । सूरति -4 आत्मा, जांच । सच्ची धरणी (५) हरा देखि करें नह कोई । जो कोई दकि हमारा रिहै, अंत फजीहति होई ११। जस हम चलें चल नह कोई, की सो करें न सोई। मार्च कहा कहे जो चल है, सिद्धि का सब होई ।।२। हम तो यह घेरे जग नाचनभेद न पाई कोई। हम पाहन सतसंगी बासी, सूति रही समोई ।३। कहा करि बिचरि लेई सुन्नि, ब्था सब्द नहि होई। जगजिवनदास सह मन सुमिरत, बिरले यदि जरा कोई 1४१। (५) हमारा . . , कोई =मेरा कोई अनुकरण न करे। भले ... कोई =उस प्रकार व्यवहार न करे । मानें . . . चलिहै =मेरे कथन को समझ-बू कर जो चलेगा । शहन है । संसारी जीव (६) भाई र कहा न मान कोई । जिहि समुझ यके रह बता, मन परतीत न होई ।।१। कपष्ट रीति के करह बंदगी, सुमति न व्याएं सोई । भये नर होन कुमारग परि, जारिन सर्बस खोई। गे भण्हाय तनिक सुख पा, मैं में रहे समोई। फिर पछिताने कष्ट भये पर, रहे सतह मम रोई १३है। दे खि परत नैनन से , कठिन जीव है बोई । जगजीवन अंतर महें सुमिरजस होई तस होई ।।४। (६) कपढ़.. . सोई =ऊपरी ढंग से उपासनादि कर लेते हैं,