पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४५०

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मध्ययुग (उत्तराई) कुण ज्यादा कुष्ण कम्मकभी करना नहँह कजिया। एक भगत हो रामबृजा रहमान सो रजिया । क, दीन दरवेश, दोय सरिता मिल सिन्झू । सब का साहब एक, एक मुसलिम एक हिन्दू ।।११ बंबा बाजी झूठ है, मत सांची करमान । कहां बीरबल गो है, कहां अकबर खान है॥ कहां अकब्बर खानभले की रहे भलाई। फतेह सिंह महाराज, देह उठ चल गए भाई हैं। कहा दोन दरवेश, सकल माया का धंधा । मत सांची कर मान, झूठ है बाजी बंदा ।२है। (१) कजिया-लड़ाई, झगड़ा। कुणकौन। रजिया-राजी । सि न्यू सिंधुसमुद्रअंतिम लक्ष्य। (२) बाजीवुनिया का खेल, प्रपंच का पसारा। उठ . . . गए=मर गए। बाबा किनाराम बाबा किनाराम बनारस जिले की चंदीली तहसील के रामगढ़ गांव निवासी अकबर सिंह आत्रिय के घर उत्पन्न हुए थे और बचपन से ही एकांत प्रेमीविरक्त एवं श्रद्धालू व्यत्रित थे । इनका विवाह केवल १२ वर्ष की अवस्था में ही हो गया था । किन्तु ये गौना कराने नही जा सके और इनके हृदय में आध्यात्मिक ज्ञान के प्रति आकर्षण इतना प्रबल हो उठीं कि ये घर से किसी गुरु की स्नोज में निकल भागे । । ये पहले बलिया जिले के कारों गांव निवासी बाबा शिवाराम के शिष्य हुए, किंतु वहां अधिक दिनों तक नहीं ठहर सके । ये फिर घर आकर दूसरी बार देश भ्रमण के लिए निकले और इस प्रकार अंत में एक बार घूमतेफिरते जूनागढ़ में बंदी भी बनाये गए है परंतु अबकी बार इन्हें सत्संग से पूरा लाभ हो चुका था और इन्होंने आध्यात्म चिंतन भी बहुत कुछ