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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४५५

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४४२ नामों अनुरा निप्र बिन्न, नाम गुन शा। बनी तो का अ आदि , औौंध वनी बनाई !।३है। जगजीवन संत गुरू वचन साले, सच संनमें लड। फरु बास झुलनवास खत्म, फिरि न यह जग आई ।४१। सुवा=तता, वन व कुंडलिनी । सिस्वर =पहाड़ की चोटी, प्रमीला बा मपद । अद ज्ञान (३) देख अशयों में तो सांई की जरिया। सांई की सेवरिया सतगुरु की डsरिया ३१। सदर ताला सशक्षiह कुंजी, संद को लगी है जिरियाहै२। सबद ओढ़ा सबद बिम, संबद को चष्टक चुनरिया ।३है। सबद सरू स्वामी अष चिरारोंश्र चरन में वरिया ४३ बूलनदास भेज सई जोजोबनम, अग्नि से अहं उडजदया है।५। अगिम से .. .उजरिया ब्रह्म ज्ञान द्वारा अहंभाव को नष्ट कर दिया । अक्ति की साधना (४) जो कोई भक्त किया चहे भई tटक। करिघेराव भसल करि गोला, सो तन मन चढ़ाई १७११। मोढ़ के बैठ अधिनता घरवर, त अभिमान बड़ाई ।।२है। ने प्रतीत घेरे इश्क तागा, सो रहै सुरत लाई ५३। गगन चांडल बिच अभरन झलकतक्यों न सुरल मलाई ।।४। सेस सहस मुख नितु दिन बरनत, बेद को ठे गुन गाई।।५। सिव सनकादि नादि अह्म दिक, ढूंढ़त आह न पाई।६। नामक गांठ कबोर सता है, सो मोहि प्रगट अनाई ।७। श्रुष प्रह्लाद यही रस मतेंसिव रहै ताजी लाई है।८।