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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४५७

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संतकांक्ष्य माया-। (७) राम तो साया नाउ नचावें। निस आसर में रो मनुवां व्याकुलसुमिरन सुधि नह अबे ।१५६ जोरत तू ह सूत मेरोनिरवारत अरुझावै। कहि विधि भजन कर्फ मोरे साहिब, बरबस मोहि सतवं ।२r सत सनमुख थिर रहें स , इतउत चितरह बुलावे। आरत पंवरि पुकारां साहिब, जन फिरि यादति पर्व 1३. थो कछ जन्म जन्म के नाचत, अब सोहि तब स भावै। दूलमदास के गुरु दयाल दुमकिरपfह से बनि आ ।४२ तुरै से तोड़ देता है । नेह सूत=प्रेम के धागे को । निरबारत = सुलझाते समय 1 प्व रि=पर द्वपूर पर। साखी पति सनमुख सो पतितर, न सनमुख सो सूर" दूसन सर सनसुख सबा, 1 रु ख गनी सो पूर ३११५ छठवां माया चक सइअरुनि गगन दुधार । दूलन बिन सतगुरु मिलेबेधि जायको पार ।।२। स्वास पलक मा जातु है, पलकहि सां फिरि प्रड । वूल्म ऐसी स्वास से, फिर सुर्सिरि रट लाए।३। पैड स्म होइ मरजिया, टू हेड दिल दरियड । दूल नाम रतन कां, भागन कोड अन पाख है।४r चितदन्न नजी ऊंच मतमाझंह जिकिर लगाय। दूलन सूपरमपदअंधकार मिटि जाय।!! विपत्ति सनेही मीत सट्टे, नीलि सनेही रड । दुलम नाम सनेह वृढ़ ,सोई भत कह।ड ।३६। ।