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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४५८

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मध्ययुग (उनपढ़ें ) रम नाम कुइ अच्छ, रटे निरंतर कोय । झुलस दीपक बदरि , मन परतीत जो होइ ५७। दू लम एक गरीब के, हरि से हिंदू न और 1 आप जहाज के कागजोसूफ और न बर से ८है। दूलन कृपाते पाइये, भक्ति नम हांसी ख्याल। काबू पाई सहज हों, कोउ हूंढ़त फिरत चिहल ।।e। बुलन बिरवा प्रेम को, जामेड डे हि घट मांहि। पांच पचीसों थकित भ, तेहि तरबर की छहि 1१०३। सती अग्नि की आंच सहि, लोह आच सह सूर । दूसन सत प्रचहि सहैराम भक्त सो पूर।३११। बेव पुरास कहा कहेड, कहां किताब कुरान । पंडित काजी सत्त कg, दुलम मल पावान १२। कतईं प्रशष्ट ने नन् कि ट, कतः रि छिजाने। दूलन दीन दयाल ज्यों, सालव सारू पानि ११३। दूलन यह सत गुप्त है, प्रगट न करे बखान । ऐसे रख छियाइ नन, जस विधवा औौधान 1१४। छठवां =छठी ज्ञानेन्द्रिय मन । मरजिया ==मरजीते जो मोती के लिए समुन्नमें डुबकियां लगाते हैं । जिफ्रिज, स्मरण । मालव . . . पामि == मालवश्रदेश एवं मरुप्रदेश के जल की भांति, मालवे में जहां पानी की अधिकता है कहीं न कहीं दीख पड़ जाता है, किंतु मरुभूमि में जहाँ इसकी नितांत कमी है कठिनाई से उपलबध हो पाता है । इसी शकार परमात्मा की अनुभूति भी कभीकभी तो सहज ही होती जाम पड़ती है और कभीकभी असंभव सी समझ पड़ने लगती है । संत दरिया साहब मारधाड़ वाले) मारवाड़ प्रदेश के जैतारन गांव में । उत्पन्न होने वाले दरिया साहब जाति के बुनियां थे और उनका जन्म सं० १७३३ में हुआ था । उनके