४४६ संतकाव्य समसामयिक एक अन्य दरिया भी थे जो अधिकतर दरियादास नाम से प्रसिद्ध हैं और जो बिहार प्रांत के निवासी थे । अपने पिता का देहांत हो जाने के कारण ये, परगना मेड़त के रैनगाँव में अपने माना के यहां रहने लगे थे । । कहां जाता है कि उन्होंने सं० १७६९ में बीकानेर प्रांत के खियानसर गांजे के रहने वालेकिसी प्रेमजी से दीक्षा ग्रहण की थी। मारनाड़ प्रांत के शासक महाराज बखत सिंह के किसी असाध्य रोग को उनके एक शिष्य ने उसके कहने से दूर कर दिया और उस समय से उनकी ख्याति इतनी बढ़ी कि दूरदूर से आकर अनेक स्त्रीपुरुष उनके सत्संग से लाभ उठाने लगे। वे सदा अपने नवीन गांव रैन में ही रहते रहे और वहीं पर उन्होंने अपना चोला मं० १८१५ में छोड़ा । इन दरिया साहब की अधिक रचनाओं का कुछ पता नहीं चलता । इनके अनुयायियों की संख्या भी बड़ी नहीं है । इनके अनुयायी इन्हें प्रसिद्ध संत दादू दयाल का अवतार मानते हैं और इसके लिए कुछ पंत्रितयाँ भी उद्धृत करते हैं । परंतु इनकी उपलब्ध रचनाओं पर कबीर साहब का प्रभाव बहुत स्पष्ट दीख पड़ता है । इनकी वाणी की संख्या १००० ० कई जाती. है । इनकी रचनाओं का जो एक छोटा-सा संग्रह बलवेडियर प्रेस से निकला है उससे इनकी विशेषतओं का कुछ आभास मिलता है। । इनके पदों एवं साखियों के अंतर्गत इनके साधनासंबंधी गहरे अनुभव के अनेक उदाहरण मिलते हैं । इनका हृदय बहुत ही कोमल और स्फटिकव स्वच्छ जान पड़ता है। और इनक्री रवनाएं भी प्रसादपूर्ण हैं । इनकी भाषा पर अपने प्रांत की वोलियों का प्रभाव उतना नहीं दीख पड़ता जितना अनुमान किया जा सकता है । इनके हृदय की उदारता का एक उदाहरण इस बात में भी मिल सकता है कि स्त्रियों की इन्होंने महत्ता ही बतलायी है । इन दरिया साहब का पूर्वनाम कुछ लोगों ने दरियावजी माना
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