पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४६१

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४४८ संत-कब्यि ए। मल सेन जडे सलो , सो मल कैसे है ।२५ प्रेम का साबुन लाल का पानी, दोय मिल तांता है ।३। भेद अभेद भरस का भांड, चड़े पड़ पड़ फटे है।४।। रु ख सऊद गह उर अंतर, सकल भरस से छूटे ।५। राम का ध्यान घर रे प्रानी, अमृत का है छ ।६। जम दरियाव अप द अम, अरारम तब है ।।७। भावकरम =क का प्रभाव । सेती से । तांता अवा गमन का सिलसिला । चौड़े चौराहे पर प्रत्यक्ष । बू ड्ट्र =बरसे वृष्टि होने लगे । यात्पप्रेम (४) है कोई संत राम अनुरागी, जकी सुरत साहब से लागी ।टेक।। घर परस पिंव संग रती, होय रहो पतिबरता। दुनिया भाब काछ, समझेक्यों समुंद समानी सरिता १॥ मौन जायकर समुंद समानो, जहें देखें जहें पानी। काल कोर का जाल न पहुंचे, निर्भय ठौर लुभानी है२॥ बावन चंदन भौंरा पहुंचा, जहें बैंठ त, गंधा। उड़ना छोड़के थिर हो बैठा, निसदिन करत अनंदा 1३। जन दरिया इक राम भजन कर, भरम बासना खोई। पारस परस भया लह कंचन, बहुर न लोहा होई।४। कीर=मछुहा। बाबन उत्कृष्ट जाति का। बखानुभूति (५) अमृत नोक है सबकोई, पीथ बिना अमर महि होई।१। कोई कहे अनुस बसे पताल, नई अंत नित ग्राम काल२॥ कोइ कहे अमृत समुंदरमाह बड़वाअमिन क्यों सोखत ताहि ५३)। कोइ कहै अमृत सरित्र में बासघटे बड़े क्यों होइहे नास ४।