पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४६३

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४७ सकाय खुल गया वन्य बन्द बदरी का, घोर मिठा अंधियारा ।।२।॥ लौ लगी जाम लगन के लाराचांदनी चौक निहारा।३। सूरत संल करें नभ ऊपर, बंक नाल एट फारा ४। चढ़ गई चांप चली ज्यों घाराज्यों मकड़ी सकतरा 1५। में मिली जाथ पाय पिउ प्यारा, ज्यों सलिता जल धारा ।६है. देखा रूप अरूप लेखा, ताका वार म पारा १७है। बरिया दिल दरबेस भय तब, उतरे भौजल पारा 251 खुल . ... का बादलों से प्रावृत चंद याहर निकल नाया सकता =मकड़ी के जाले का तार । साखी सकल य का अर्थ है, सकल बात की बात। दक्रिया सुमिरन रामका, कर लीज दिन रात ११। दरिया हरि किरपा करोबिरहा दिया पठाय ॥ यह विरहा मेरे साथ को, सोता लिया जाय ।२५ बरिया बन गरुदेव का, बेबें भरम विकार ॥ बाहर घाब दिख नहीं, भीतर भया सिमार 1३ दरिया सतगुरु सध्दसों, मिठ राइ लंचा तान ॥ भरम अंधेरा मिट गया, परसा पद निरबान १४ । पान बेल से बोईपरदे सां रल देत है । जम बरिया हरिया रह , (उस) ही वल के हत १५)। अलल बसे थकास में, मोची सरत निवास है। ऐसे सयू जगत , सुरत सिखर पिछ पॉस !।६है। दरिया नाम है निरमलापूरभ ब्रह्म अगा कहे सुने सुख ना । लहै,सुमिर पार्टी स्वाब ।७r बरिया सूरज अगिया, चहुं बिसि भया उजास ॥ नास प्रकासे देह , तो सकल भर का नास है।८।