४५२ संतकाव्य साब स्वांग अस , जस कामी निःकाम है। भेष रता से भीख में, नाम रता हे राम है।२२है। सोई कंथ कबीर का, दादू का महराज ॥ सब संतन का बालमा, दरिया का सिरताज ।२३। भारी जननी जगत की, पाल पोस दे पोष ॥ मू रख राम बिसार करताहि लगधे दोष २४। सिमारमिसमरचूर चूर। बुध -बुद्धि। मंतवादी =सह- दायिक बिचरानुसार केवल रूढिगत वहीं बातों पर चलने वाला। तलवादी =परमतत्व का प्रत्यक्ष आभव कर चूकने वाला ' स्वांग =" केवल बाहरी भेष के आधार पर साधू कहलाने वाला। संत गरीबदास गरीबपंथ के प्रवर्तक संत गरीबदास का जन्म रोहतक जिले के छुड़ानी नामक गांव में, सं सं० १७७४ की बैशाख सृदि १५ को हुआ था । ये जाति के जाट थे और इनका व्यवसाय जमीदारी का था जिसका इन्होंने कभी परित्याग नहीं किया। इन्होंने आमरण गाहस्थ्य जीवन व्यतीत किया और साधु के भेष में भी कभी नहीं रहे । इनके चार लड़के और दो लड़कियां थीं। । ये अंत तक अपने जन्मस्थान में ही रहकर सत्संग करतेकराते रहे और, ० १८३५ की भादों सुदि २ को इन्होंने वहीं पर चोला छोड़ा । इनका देहांत हो जाने पर इनके गुरु मु चेले समोतजी इनकी गद्दी पर बैठे थे, किंतु आज तक वहां सभी कोई शपरंपरानुसार ही बैठते हैं ? इनका स्वभाव अत्यंत सीधा-सादा था । और ये एक क्षमाशील व्यक्ति थे । कहा जाता है कि इन्हें किसी साधु ने, केवल १३ वर्ष की अवस्था में, बहुत प्रभावित कर दिया था और. ये तभी से संतमत की ओर आकृष्ट हो गए थे । परंतु एक दूसरा अनुमान है स प्रकार का भी किया जाता है कि सर्वप्रथम , इन्हें
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