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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४७४

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मध्ययु (उत्तरार्द्ध ) ४६१ अल्लह अविगत राम है, बेचगून चित माहैि । सब्द अतीत अपराध है, निरगुन सरगुन नाह 1१२)। साहब साहब क्या करेसाहब है परतीत। स सोंग साहब अया, पांडे गाबें गीत है।१३। फूल सही सरगुन कहानिरगुन गंध सुगंध। मन साल के बाग , चैंबर रहा ह वष 1 १४है। नाम जया तो क्या आया, उरमें नहीं यकीन । चोर मुसे थथर लूटहों, पांचपचीसो तीन 1१५। सुमिरन तबही जानियेजब रोम रोम बुनि होय । कुंज काल में बैठ करमाला फरे सय ३१६। सुरत निरत मन पवन हूं, को एकत्तर चार दू बस उलट समझेय ले, दिल अंदर दीदार ५१७। चार पदारथ महल में, सुरत निरल मन पौन। सिव द्वारा खुलिहै जबदरसे चौबह भौन 1१८। जित सेंती दम ऊचरे, सुरत तहई लाय। नाभी कुंडल नाद है, त्रिकुटी कमल समाय 1१ e। सनकादि सेवन करें, सुकदे बोले साव। कोटि ग्रंथ का अरथ है, सुरत ठिकाने राख ।२० जल का महल बनाइया, धन सस रथ सांई । कारोरार कुरबान जहकुछ कीमत नांई ।।२१। राण मास है स्या का, पांच पचीसौ संग । अपर की कैंचल तजीअंतर बिषय अंग है।२२ ॥ नित ही जाने नित , संस माह सरोर । जिनका संसा मिट गया, सो पीरन सिर पीर 1२३है। ले लागी तब जानियेहरदम नाम उचार । एक मन एकै दिसा, सांई के दरबार में२४है