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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४७६

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मध्ययुग (उत्तरार्द्ध ) ४६३ जान पड़ता अतएव पहले अनुमान के अनुसार ये अपने देहावसान के १०६ हैं दूसरे के अनुसार इनकी अवस्था समय, यदि वर्ष के रहते तो ' १४६ वर्ष की हो जाती है जो बहुत अधिक कही जा सकती है । इनका विवाह केवल ९ वर्ष की अवस्था में हुआ था ,१५ वें वर्ष में इन्हें बैराग्य हुआ था । २० वर्ष में इनके हृदय में भक्ति का पूर्ण विकास हो आया और ३०वें में इन्होंने 'तख्त पर बैठकर' उपदेश देना आरंभ किया था । प्रसिद्ध है कि ये अपना स्थान छोड़ कर अपने जीवन भर कहीं अन्यत्र नहीं गये और वहीं इन्होंने अपना चोला भी छोड़ा । फिर भी, दरियापंथियों के अनुसार, इनका कुछ दिनों के के लिए केवल कारों, मगहर, वाईसी (०ि गाजीपुर) हरदी व लह ठान (०ि शाहाबाद) जाना भी मानते हैं । बरियादास की लगभग २० रचनाएं बतलायी जाती है जिनमें से ‘दरिया सागर' एवं 'ज्ञान बीपक' मात्र प्रकाशित हैं । कुछ फुटकर पदों एवं साखियों आदि का भी एक छोटा, सा संभ ह बलबेडियर प्रेस। द्वारा प्रकाशित हुआ है । दरियादास की रचनाओं पर कबीर साहब का प्रभाव बहुत स्पष्ट हैं और इनकी बहुत सी बातें तो क़बीरपंथ की. धारणाओं से मेल खातो है । ये अपने को कबीर साहब का अवतार मानते हुए से भी जान पड़ते हैं। जो हो, इनमें सांप्रदायिकता की . मात्रा अधिक दीख पड़ती है । । दरियावास ने स्वरविज्ञान ' पर भी एक छोटी-सी पुस्तक लिखी है जो बहुत कुछ प्रचलित परंपरा का ही. अनुसरण है । इनकी रचनाओं में दांपत्य भाव की झलक प्राय: सन लक्षित होती है जो इनकी प्रेमभक्ति के कारण ही अधिक संभव है । इनकी रचनाओं में जितना प्रयत्न रहस्यपरिचय की ओर किया । गया है उतना भाषा की सजावट के लिए नहीं ।