पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४८३

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७० संत-। साखी है मए साफ़ बराबरमंदा लोचन महि । कबन दोष म भान करेंअप सूझीत नादि 1१। पहिले गुड़ सक्कर हुआा, चीनी मिसरी कीरिह । सिसरी से कन्द भयोयही सहागिनि चोन्हि २ दरिया तन से नह जुदा, सब कि य, तन के महूिं । जोग जगत सों परइये, बिना जुगत किछ नाहि 1 ३।। तोनि लोक के ऊपरे, अभय लोक विस्तार । सत्त सुकृत परबान पावे, पहुंचे जाय करार ।४। ए) सो अनंत भ, फुटि डारि बिस्तार । अंतेह फिर एक है, ताहि खोलु निज सार 11५। माला टोपी भेष नहवह सोना सिंगार। सदा भाव सतसंग है, जो कोइ रद करार ।६। कन्दा==एक प्रकार की जमाई हुई चीनी की मिठाई। अय लोक परम पद जिसे दरिया दास ने अन्यत्र छप्रलोक, अमरपुर जैसे नामों द्वारा भी निर्दिष्ट किया है । सत्र सुक्कृत =सत्य व सत्कार्य कबीर पंथानुसार कबीर साहट के सत्य युगीन अवतार का नाम । परवाना =प्रान्ता-पन्न । करारन्सबंध किनारा, सब से ऊंचा पद । सदा भाव =साबी वेश-भूषा । संत चरणदास संत चरणदास का जन्म मेवात के अतर्गत डेहरा नामक स्थान के एक हू सर वैश्य बुल में हुआ था। इनका पूर्व नाम रणजीत था और ये सं० १७६० की भाद्रपद शुक्ल तृतीया को मंगलवार को उत्पन्न हुए थे । अपने पिता का देहांत हो जाने पर ये अपने नाना के पर दिल्ली में रहने लगे जिन्होंने इन्हें नौकरी में लगाना चाहा ।