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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४८४

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४७१ संध्ययुग (उत्तरार्द्ध) परंतु पाँचसात वर्षों की अवस्था में ही इन्हें कुछ आध्यात्मिक बातों से परिचय हो गया था जिस कारण इनके नाना कृतकार्य न हो सके और ये योगाभ्यास में लग गए । इन्होंने अपने गुरु का नाम शुकदेव बतलाया है जो प्रसिद्ध व्यास पुत्र शुक्रदेव मुनि से अभिभ कहे गए हैं। फिर भी कुछ लोग उन्हें मुजफ्फरनगर के निकट बर्तमान शूकरताल गांव का निवासी सुखदेवदास अथवा सुखानंद समझते है । संत चरण दास ने गुरु से दीक्षित होकर कुछ दिनों तक तोटन किया और बहुत दिनों तक ब्रज मंडल में निवास कर ‘श्री मद्भागवत’ का गंभीर अध्ययन किया है उस ग्रंथ का एकादशवां स्कंध इनके जीवनदर्शन का एक मात्र आदर्श सा जान पड़ता है । इनके अंतिम ५० वर्ष अपने मत के प्रचार में ही बीते और दिल्ली में ही रहते हुए इन्होंने सौ० १८३९ की अगहन सुदि ४ को अपना चोला छोड़ा । संत चरणदास को ग्रंथ रचना का अच्छा अभ्यास था और इन्होंने लगभग २१ ग्रंथ लिखे थे। इनमें से १५ का एक संग्रह ‘भी बैंक- टेश्वर प्रेस, बंबई, द्वारा प्रकाशित हुआ है और नवल किशोर प्रेस लखनऊ से भी सबके सब निकल चुके हैं। इनके मुख्य १२ ग्रंथों के प्रधान विषय योग साधना, भक्ति योग एवं ब्रह्मज्ञान है और इस बात को इन्होंने भी स्पष्ट शब्दों में कहा है । इन्होंने ‘योग समाधि' को ही एक प्रकार से ‘ज्ञान समाधि ' की भी संज्ञा दी है और ब्रज जैसे तीथों को अभौतिक रूप दिया है । ये नैतिक शुद्धता के भी पूर्ण पक्षपाती हैं। हैं और चित्तशुद्धि, प्रेम श्रद्धा एवं सहययहार को उसका आधार मानते है । ईनकी रचनाओं में इनकी स्वानुभूति के साथ-साथ इनकी अध्ययनशीलता का भी परिचय मिलता है और इनकी वर्णन शैली पर सतपरंपरा के अन्य कवियों के अतिरिक्त सगुणोपासक भक्तों का भी प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है । इनके नाम से कुछ पुस्तके श्री कृष्ण की विविध लीलों पर लिखी गईं भी मिलती हैं ।