४८२ संत-काव्य सरस साबुन सुरति घोबिनमैलि डारे धोइ। गुरू सब जो भ्रम , टूल डाधोइ ।३। नावागमन के सोच , सब्व सहपो होझ। शिव नारायण एक दरसेएकतार जो होझ।४। नई दूध देबे । मोइगाय के पिछले पैर बांधने की रस्सी । अंब =पानी । सरस =जिसमें विकारों को दूर कर देने का गुण हो । सुरति =आदम। एकतार =निरत। (२) तनि एक मनुआ घरा नू धीर ।। । पांच सखी आाइल मेसे 78 गना, पात्रों का हथवा में पांचपांच तीर है खडूचब ग्र न तब छोड़ब तीर, धापे मरम कर करो सबबीर । शोव नरायन चीन्हल बीर, जनम जनम कर मेटल पीर १। पांच. .. तोर =पंच तस्द एवं पच्चीस प्रकृतियां ॥ गुन = त्रिगुण। मुदये =मुद्दईबैरी : बीर-=निपुण सद्गुरु । उपदेश (३) सिपाही मन दूर खेलन मत जैये ।टक। घट ही में गंगा घट ही में अनु ना, तेहि विच पैठि महये । श्र हो विरिछ को शीतल जुड़ यूहिया, तेहि तरे बैछि नहैये । मात पिता तेरे घही में, निति उद्धि दरसन फंसे। शिव नरायन कहि ससुझावेगुरु के सबद हिये कैये 4१है। दूर =अन्यत्र । खेलन. . . . जय अपने को व्यस्त न करो । । घर ही ... . नहैये शरीर के ही भीतर गंगा एवं यमुना की भांति मोक्षदायिका ईडा व पिंगला नम की नाड़िया हैं उनकी मध्यवर्तिनी सुस्ना में प्रवेश कर लीन हो जानो । अछह बिरिछ=अक्षय वृक्ष, के . परमातम तंव ।
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