पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४९६

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मध्ययुग (उत्तरार्द्ध) ४ से ३ पछतg (४) शुनबा एको नहींकैसे मन्नबो सैयां ।टक। गहरी नदिया नाव पुरानी, भइ गइले सांझ समइया है।१। संग की सभी सब पर उतरि गईं, मैं बपुरिभ एहि लुइंया ।।२। शिव नारायन बिंब नती कैरत है, थार लगा थो मेरी मइया 1३१ मिलन (५) प्रेम संगल प्रालि सब सिंलि गाई ।टक।। घर घर कोहबर रुचिर बनाईजहां बैठे दुलहिनि दुलहा सोहाई । सब सखिया सिलि मन मत लाई दुलहा के रूप देखि कछु न सोहाई है। दुख हरम गुरु सब सुधि पाई, बेख चंद्रबार में सुरति लगाई 1१।। घर....बनाई =हृदय क्षेत्र को ही बर बधू के मिलन का सुंदर स्थान ठीक किया। मन मत लाई=एक मत हो गई । देस चंद्रबार ब्रह्मांड क्षा बह स्थान जहां से -व होता है । संत शिवनारायण के जन्म-स्थान का नाम भी चंदवारहै । अनाह-श्रय (६) न्दाबन कान्हा मुरली बजाई।'हा। जो जर्ज सहि तं सहि उठे भाई, कुल की लाज गंवाई १। जो न गई सोतो भई है बाबी, समुक्ति समुशि पछिलाई 1२ा। गौवन के समक्ष बेन बसत है, बछवा पिंयत न गाई 1३। शव नरायन अब सबद सुनि, पवन रात अलसाई ।।४। (६) गबन . . .बात है = नायें चरते समय अपने मुख की घास मुख में हो लिये रह गई । .वरह (७) मगन तार गनत गड्र रतिथा ।टेक। गगन नहागह अनहद बाजल, बरसत अमृत धार।