पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५०५

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४७५ संतकाय। यह तो माया फाँस कठिन है, का धन सुत वित तीया (५१। सत्त सम्ब सन सागर , रतन अमोलक पीया। अदपा तेजि धंसे सो पार्क, से निकले मरजीया भ२३है। रति मिरति लौलील भयो जब, वृष्टि रूप मिलि थीया । ज्ञास उचित कल्पद्म को तर, जुबिल जमावो बीया ।३। सतगुरु भयें दयाल ततछिन करना था सो कोया । कल भीख परकासी कहियेघर अह बाहर दीया 1४। करकत हयाकसक होती है न पीया =प्रियतम ने मर जोया =मरजोबार । थया=स्थिर हुआ । ततछिन= शो । दीया =दपक ई । प्रीति की रीति (8) प्रीति की यह रोति बखान टेका। कितनो दुख सुख परे वेह परचरन कमल कर ध्यान । हो चैतन्य विचारि तजो , खांड धूमि जनि सामी 1१। जैसे स्थानि स्वाति बंद बिन, प्रान समर्थन ठानी। भोखा जेहि तन राम भजन नहकाल रूप तेहि जान ।।२ । प्रेम का सौदा (१०) कहा को प्रेम बिसाहत जाय । महँग बड़ा गथ काम न आई सिरके मोल बिकाय कt। तन मन धन पहिले अरपन करि, जग के सुख न सोहाय । तजि आपा आधुरिह हूँ जारी, निज अनन्य सुझाथ 1१।। यह केवल साधन को मत है, ज्यों गूंगे गुड़ खाय । जानह भले कहै सो कास्सों, दिल की दिलह रहाय १२।। बिनु पग माच नैन बिल देखें, बित करताल बजाय । बिसरबन मुनि सुने बिविधि विधि, बिन रसना गुन गाय ।३।"