पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५०८

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मध्युर (उत्तराई) अकथ अगाथ बोई अनुभव फल जोई, निशु महाभोर मानो सोय उवि जागो है । बाजे अनव सारु उकैदल मोचछ झारू सूर लेते मांड़ि रहो भी कूर भागो है ।३। खुद एक भुस्सि आहि बासन अनेक ताहि, रचना विविध रंग गढ़यो कुम्हार है । नाम एक सन आस गहना व ट्रेतभास, कहूं खरा खोष्ट रूप हमहि अधार है । फेन ब्द बुद अरु लहरि तरंग बहु, एक जल जानि लीजें मीठा कई खार हैं। अतमायों एक जाह्न भोखा कहे याही सते, ठग सरकार के बटोही सरकार है ।४। १--लुसार =मार, बहुत से २- आासना=शासन । . ३-पुलकि उमंग के साथ, प्रसन्नतापूर्वक 1 मारू ==युद्ध का बाजा । मोचछ झाह : = मुंों पर ताव देते हैं ५ मांड़ि रहो =उटा । हुआ है । कूर =कायर ने ४--खुद =केवल ने स्मिभूमि, मिट्टी । प्रास अस, ऐसा । वासन= ब ह्न 1 हेमहिसोना ही। जाते जाति, मान । बटोही =पथिक, मुसाफ़िर । मेयो अचेत नर चित्त चिता लाग्रो, काम अरु शोध मद लोन रहे . सकल परपंच में खूब फाजिल हुआ, माया मद चाखि मन मगन माते हैं। बढयो बीमाग मगरूर हय गज चढ़ा को नह फौज मार जाते । भीखा यह ख्वाब को लहरि जग जानिये जागिकरि देख सब भू नाले 1१४