पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५११

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४६ संत-काध्य जुक्ति मिले जोगी हुआर जोग सिलन को नाम है। जोग मिलन को खास सुरति ज' मिलें निरति जब । दिष दष्टि संजयस देखि के लिखे स्य तब हैं। जोध भिी जा ोद को पीब स्वयं भगवान । तब सक्ति मिल जा घबो सब पर कब्यान में भीडा ईपुर की कलश यह ईबुराई कम । जुक्ति मिले जगी आग जोश मिलन को शाम ५४॥ चलनी को पानो पड़ो बरा कभी न होझ है। हम कभी न होई अजन बिनु धिग नर देही । झूठ परपंच मन गोंडे तय हरि परम सनेही । उधे सुपम रणजी भूख अन्न बिरु तन समरि जाहीं । जबहों उछे जो जाम हख बिसमय कहूं नही । (भीखा) सत्य नाम जने बिन' सुख चाहे अझे कोई। चलनो को पानी पड़ी बरहा कभी न हो ५।' (१) बहुरि. . . . याद =फिर बिस सहीं होता । (२) बड शरीर (३)-हासा=सच्चा । (५)-बरहा सिंचाई के लिए बनया राय नाश १ साखी दूम तन सन हुआ है, वेतनि अब राय । पीबत कोई संत जनअमृत आयु छिपाय क१। पौवा गाधर असर को, जलत सो पाँय सिराय । जो जाये सो गुरु कृपा कोउकोड सीस ऊँदाय ।२है। सक संत के रेगुले, गोला गोल बनाय है। (भ प्रीति घसि ताहि को अंग विभूत्ति लगाथ 41३।