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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५१८

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मध्ययुग (उत्तरार्द्ध ! देह धर्टी संसार में तेरो कहि सब बोय । हाँसो होय तो देर हो, मेरो कंजू न होय ५११। सोप्त नवै तो उसiह , तुसह सू भानू दीन। जो झग तो तुमदि , तुम चरनन आधीन ॥ १२। विनय पालिका से) मौ9 --लहर । धारधारालहुर । तेरिही ==तेरा ही । बेबान =बमन है अन :शपथ ! संत रामचरन संत रामचरन का जन्म जयपुर राज्य के अंतर्गत, ढंढण प्रदेश के सूरसेन अथा सोडा गांव में में ० १७७६ में हुआ था । इनका पहला नाम रामकृष्ण था, किंतु इनके प्रांरभिक जोवन को घटनाओं का कोई पता नहीं चलता ' थे वोज एन्य वैश्य कुल के थे 1 प्रसिद्ध है। कि अपनी आय के इकतोसवें वर्ष में इन्होंने किसी रात को स्वप्न में देखा कि मुझे कोई महात्मा नदी में बहन्ढे से बचा रहे हैं । जगने पर घटना की सत्यता में विश्वास करने हुए ये उस महात्मा की खोज में निकल पड़े और दांत जाकर सं७ १८०८ में कृपान जो से दोक्षित हुए । ये कृपारामजी स्वमी गमानंद की परंपरा के प्रसिद्ध अदास की पांचवीं पीढ़ी के संत दास के शिष्य थे । । संत राम चरन ने सं ० १८०८ में वे भाग्य लेकर गूदड़ धारण किया था किंतु वहाँ इन्हें पूर्ण संतोष न हो सका और इन्होंने निजी अनुभव के अनुसार संत निशिचत किय1 अत में ये शाहपुरा में आकर रहने लगे और वहीं पर इन्होंने अपने मत-त्र चार का प्रधान केन्द्र स्थापित किया । इनका देहांत में ० १८५५ में हुआ और इनका चलाया थ 'गम सनेही संप्रदाय' के म से प्रसिद्ध है ! इनके अनुसार सर्वश्रेष्ठ साधना निर्गुण शम का नाम स्मरण है और - हिक में ल तथा ईश्वरप्राप् िप्रेम के आधार पर ही संभव है। ? इनके अनुयायी अहिंसा के महत्व पर अधिक जोर देते हैं और उनकी कई