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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५१९

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५०६ संत-काव्य एक बात जैन श्रमन्याधियों के समान दीख पड़ती। है। संत रामचरन ने । लगभग दो दर्जन छोटेबड़े ग्रथों की रचना की थी जिनका एक वृहत मंग्रह 'अपमैत्राणी’ नाम से प्रकाशित हुआ है। इनकी रचनाओं के । अंतर्गत विशेष ध्यान गुरु भक्ति, साधुमहिमा, सादे जीवन, सदा चरण और भक्ति पर दिया गया है। इनकी प्रवृत्ति किसी विषय का स्पष्ट विवरण देने की ओर अधिक जान पड़ती है और ये उसे पूरी शक्ति के साथ व्यक्त करते है । जान पड़ता है कि इन्होंने प्रत्येक वात का अध्ययन मनोयोगपूर्वक किया है और उसे स्वानुभूति के बल पर, बतला रहे हैं । इनकी रचनाओं की भाषा प्रधानत: राजस्थानी है, किंतु इनकी वर्णनशैली बहुत सरल और प्रसादपूर्ण है । उनमें आलंकारिक भाषा के प्रयोग प्रचुर मात्रा में नहीं मिलते और उनमें पहेलियों की ही भरमार है। संत रामचरन के ‘राम सनेही संप्रदाय' के अतिरिक्त हरिराम- दास द्वारा प्रवर्तित 'रामस्नेही पंथभी कैड़ापा (बीकानेर) में प्रसिद्ध है जो इससे भिन्न है । पढ। आत्मानवदल (१) रसइया मोरि पलक न लाएं है । बरस तुम्हारे करण, निसिबासर जारी हो ।।ौक।। दॐ दिशा जारतर कहूंतेरा पंथ निहाई हो। राम राम की टेर दे, दिन रैण पुकाई हो 11१। वैन दुखी दीदार बिनरसन रस आशैो हो । हरदो हुलहेत, हरि कब परफा हो २है। स्वाति बंद घातक , जल और न पीब हो । घन आशा पूरे नहीं, तो कैसे जीव हो ३।