पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५२५

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आधुनिक युग ( संस० १८५०-) सामान्य परिचय संत साहित्य के इतिहास के आधुनिक युग का आरंभ उस समय से होता है जब कि अंग्रेजों के इस देश में निश्चित रूप से शासन-भार संभा ‘लने लगने के साथ हो पत्रिमी विचारधाराओं का कुछ न कुछ प्रभाव भी यहां पड़ने लगा था और यह की शिक्षित जनता अमश: आत्मनिरीक्षण एवं आत्ममृधर मंगंधी प्रयत्नों में लगती जा रही थी । इस काल के कई भारतीय सुधारकों ने अपने बर्मसमाज एवं साहिश्य की प्रचलित बा। पर एक नवीन दष्टिकोण से विचार किया और उन्हें फिर से व्यवस्थित करना चाहा। । फलत: इस युग की एक प्रश्रान विशेषता संतों के अपने मुल एवं शुद्ध संत सत को एक बार फिर से अपनाने की ओर प्रवृत्त होने तथा इसके लिए वर्नमान त्रुटियों को दूर कर वास्तविक मार्ग सुझाने में भी लक्षित हुई । इस समय के संतों में प्राय: सभी शिक्षित और अनुभवी थे और उनमें कई एक उच्च कोटि के विद्वान एवं अध्ययनशील भी थे । इस कारण उन्होंने मध्ययुगीन प्रतियों के प्रभाव में आकर अवनति की ओर निरंतर बढ़ती जाने वाली संत परंपरा को सचेत एवं सावधान करने में अपनो विद्वत्ता का भी उपयोग किया और अनेक विवादास्पद बातों की युक्तिसंगत व्याख्या एवं विवेचन द्वारा नवीन सुझाव उपस्थित किये । श्रंतु इनमें से जिन लोगों ने इधर अधिक ध्यान नहीं दिया उन्होंने व्यापक नियमों की ओर निर्देश करते हुए सावित्र दोबन ‘का महत्व ठहराया ।