पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५२८

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अ(धुनिक यु ५१५ आ पंख , स्थान कबीर पंथीय साहित्य में बहुत ऊंचा है और पंथ थीका का अध्ययन करने वालों का आद-' है । उन्होंने कई एक फुटकर पदों और साखियों की भी रचना की है । उनकी शैली अधिकतर समाप्त पद्धति का अनुसरण करती रसरहस दास सत्य की खोज बड़ी गई तो खेल कर करना जानते थे । उनका देहांत में ० १८६ में हुआ था 1 पद प्रभु की लीला भुजी जुम बिन कौन है । सह7 कॉइन यम जाल फांस है तासों क्षेत्र बचाओ १३। नाना कांत झय झोवो अपको रूप छिपाब । पंछ को हूं परगट ग्रासे, तेहि को कोई लखावं ।२। अपुहि एक अनेक कहा, भिविध सरूष बनावें । सtात होथ दुष्ट सो, परताप अंत दिखाथ 1३। विषय विकार जगह अरझरदे, जहां तहां भटकाबैं। योग ध्यान विशुन , ताहि सुरति अटकाई है।४। अस नाम नौका , भवकी बार बहावें । तस्वमसी कहि ताहि दुबाथू, अंत कोझ नहि पावं 1५है। चोर सक्लि जोइनि चौरासीतेहि मिलि के बढ़ावे । नेम धर्म पूजा औ औो संजमबहुबिधि लागि लगाये ।।६। भेष अलेख करे को पाईजोवह चैन न अवै । चार वेद षष्ट अष्ट दसों लीं, शून्यह शून्य समावे ७। काल चक्र बसि उत्पति परलय जीव दुसह दुख पाई। साहब दय' कोन्ह परस राय, रम रह गुण गाने 15t पंचक्रोश =श रस्थ अवरण ।