५ १६ संतकालय । साखी दूज सत्य असत्य को, जहां नहीं कुछ लेश । सो वाश पूछ परख है, ठत सकल कलेश ५१। प्रथ सहि शब्द सुरिके, टारे नवविध जाल । हांई टत संधि को, ऐसो शरण दयाल ३२॥ राम रहस सहब शरणअभय प्रशंसक उदोत है अवागमन की गम नहीं, भोर सझ नह होत ३८। झई झलक, और रोषित छुया । संत पलटू साहब । पलई साहब के आविर्भाव काल के ठीक-ठीक्षक संवत विदिी नहीं, किंतु ऐसा अनुमान किया जाता है कि विक्रम की १९ां झ तब्दो के उतरार्द्ध में ये वर्तमान थे और किसी समय उसके अंत में हो इसका देहावसान भी हुआ । ये भीखा साहब के शिष्य गोविंद साहब के शिष्य थे । इनका जन्म नगर के लालपुर गांव (जिला के गाद) में हुआ था जो आजम गढ़ जिले की पश्चिभा सीमा से मिला हुआ कहा जाता है। । ये जाति के कांदू वनिया थे और पहले अपने पुत्र गोविंद के साथ किंत साहू जानकी दास के शिष्य हो गए थे 1 f जव गriबंद को अपने उस गुन के उपदेशों इrग पूर्ण शांति नहंीं भिी तो ये ज, नथ पुरी की ओर चल पड़ेयात्रा के मार्ग में हा उनमें भासा साक्ष्य से भेंट हो गई और उनके सतम द्वारा . हा कर वे फिर से दक्षित हो गए । गोविंद के फिर पर लौट आने पर उनत ६६ पत्र से । भेंट हूई जिन्होंi, उन्हें उस नोन दशा में पक र, अना ॥ ६ स्त्रोकार कर लिया । पलटू साहब की एकाध पंक्तियों से यह भा विदेत हता है कि अब की बार दक्षित हो जाने पर यहां ने अब से हस्थाश्रम का भी परिपारा कर दिया और मूडें मुंडा क र’ तभा करके ो तोड़ कर पूरे विरक्त बन गए । इन्होने अपना मकान कें द्र अयोधा को बना रखा
पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५२९
दिखावट