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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५३०

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आधुनिक युग ५१७ था जहां के बैंको नसे प्रायः जला करते थे और कदाचित् उन्हीं के कारण इनकी असामयिक मृत्यु भी हो गई । पलदू साहब एक मस्त मौला संत थे और अपनी आध्यात्मिक अनु- भूति के नशे में सद चूर बने रहते थे । इनका सत्संग वेदांती लोगों तथा सूफियों के साथ भी रह चुका था जिस कारण ये उनसे भी बहुत कुछ प्रभावित थे । पटटू साहूव की बहुत सी रचनाएं मिलती हैं जिसमें में इनकी कुंडलियां अधिक प्रसिद्ध हैं । इनके पदों, रेखतों, भूलनों, अरिल्लों, कुंडलियों तथा साखियों का एक अच्छा संग्रह 'बेलबेडियर प्रेस' प्रयाग द्वारा तीन भागों में प्रकाशिात हो चुका है। । इनकी रचनाओं पर कबीर ताहब की गहरी छाप दीख पड़ती है और ये द्वितीय कबीर’ कहलाकर भी प्रसिद्ध हैं । वास्तव में ये एक उच्च कोटि के अनुभवी संत, निर्भक अलोचक तथा निलंद्र जीवन व्यतीत करने बाले महात्मा थे और इसी कारण ये बहुत लोकप्रिय भी है। । इनकी भाषा पर फ़ारनी-अरबी का प्रभाव पर्याप्त मात्रा में लक्षित होता है और इनकी स्पष्टवादिता इनकी प्रत्येक पंक्ति में व्यक्त होती है। पद सच्चा गुरु (१) । गगन कि मुनि जो आनईसोई गुरु मेरा। वह मेरा सिरताज है, में बाका वेरा हैटेक। । सुन में नगर बसावईसूतत में जारी है। जल में अगिन छपावईसंग्रह में स्याओं । १। अंत्र विनर जंत्री बनेरसना बिनु गई । सोहे सब्द अलाषि है, स्नको ससुझावें ।।२। सुवि डोर अमृत भर, छेह कूप अरथ-। उलटे कमलfह गगन में, तब मिले परम सुख ३।