पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५३१

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५१८ त-व्यं। भभजन प्रखंडित लागई, जस तेल कि धारा । पलटू बस इंडौन करि, तेहि बारबारा ५५४है। सृष्टि रहस्य (२) ऐसी कुदरत तेरी साहिब, ऐसी दरति तेरी है टेक। धरती नभ हुई भील उठाया, तिसमें घर इक छया है । तिस घर भीतर हाट लगा, लोग तमाम अग्रा है । १। तीन लोक फुलवारी तेर, फूलि रही बिनु साली है । घट घट बैठा आधे सीं , लिलभर कहीं न खाली है ५२)। चारि खास श्री भुवन चढरदसलख चौरासी बसा है । आलम तोहि तोह में आलमऐसा मजब तसास है ।३। नटव होइ के बाजी लाया, आपुइ देखभ हारा है । पलटू दास कह मैं कासे ऐसा यार हमारा है ४है। आलम =जगतसूट है। जोगी नियतम (३) प्रेम बान जोग मारल हो, कसके हिया मोर टेका। जोगिया के लाल लाल खिधा हो जप्त वल के फूल। हमारी सुख चुनरिया हो, मुझे भयं समतूल ।१।" जोगिया के लेड मिराछोलवा हो, यापन पष्ट छोर से दूनों के सियब गुदरिया हो, होइ जाब फझीर ५२॥ गगन' में fजगिया बजाइन्दि हो, ताकिंहि मोरी ओर। चिसवनि में मन हरि लियो हो, जोगिया बढ़ चोर५३। गंग जमुन के बिचवां हो, बहै झिरहिर मोर। तेहि ठंयां जोरल सनेहिया हो, हरि लैशयो पीर है।४। जोगिया अमर मरे नतह हो, पुजवल मोरी आप्त । करम लिखा बंर परबल हो, गावै पलटू दास ।५।