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संत-काव्य


बंधी रहती है। तुरिया= चौथे पद पर।

मूर्ख जीवात्मा
(६)


धबिया रहै पियासा जलबिच, लागि जाय मुंह लासा टेक॥
जल में रहै पिये नहि पूरख, सुन्दर जल है खासा।
अपने घर सन्देस पठावै, करै धोबिनि कै आासा॥१॥
एक रती को सोर लगावै , छूटि जाय भर मासा।
आपै बटै करम की रसरी, अपने गल कर फासा॥२॥
आपुइ रोवै आपुइ घोवै, आपुइ रहै उदासा।
दाग पुराना छटै नाहीं, लील बिषै की बाधा॥३॥
साबुन ज्ञान लेइ नहिं मूरख, है सन्तन के परसा।
पलटू दास दाग कस छूटै, आछत अन्न उपासा॥४॥

धुबिया= जीवात्मा । जल= आत्म सागर । लागि.... लासा= उसका लग जाता है । धोबिनि= माया । बासा= वासना ।

कुंडलिया
(१)


साहिब साहिब क्या करै साहिब तेरे पास॥
सहिब तेरे पास याद करु होवै हाजिर।
अंवर धंसिकै देखु मिलेगा साहिब नादिर॥
मान मनी हो फना नूर तब नजर में आवै।
बुरका डारै टारि खुदा बाखुद बिखरावै॥
रूह करे मेराज कुफरका खोलि कुलावा।
तीसौ रोजा रहै अंदर में सात रिकावा॥
लामकान में रब्ब को पावै पलटू दास।
साहिब साहिब क्या करै साहिब तेरे पास॥१॥


नादिर= अनुपम । मनी= मनका। फनि= नष्ट । बुरका-पर्दा ।