पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५३८

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अrधनिक युग ५२५ पलटू ऐसा कीजिए मन नह मैला होय। बुधिया फिर मर जायगी चादर लीजे बोय 1१०१। धुबिया . . . . जायरुप शुरुपदेव का प्रभाव जाता रहेगा। चाइ=मन। पानी =उपदेश। बार विलंब सद=भिगो कर मग्न कर। कलमनचंचलता ( कल= विमलता एवं स्थिरता है। (११) साहिब बहो फक़ोर है जो करेइ पहुँचा होय है॥ जो कोई पहुँचा होष नूर का छत्र बिराई। संबर तख्त पर बैठे दूर अपहृ ा बाजे । तम्बू है असमान उदमी का तर्श बिछाया। छिमा किया थिढ़ फाष स्टुशी का मुस्क लगाया है। नवम सुजाना भरा जिकिर कई ने द व ज्ञा। साहिब चौकीदार हेड इबलोसg डरता। पलट निथा दोन में उससे बड़ा म कोय। साहिब बहीं फ ो है जो कोइ पहुँचत होय ।।११। सबर-=संतोष। मुस्क--अश्क, कस्तूरी। जिकिर=जप साधना। । नेज=बरछा, यहां वासप्रदास का जप। इत्र लोढ=तान भी। (१२) फ़ाका जिकिर किनात थे तोमो बाल जगोर । तीनो बात जगोर खश को कनो डारे। दिलको करें कुसाद आई भी रोजी टघरे । इबादत दिन रात याद में अपनी रहना। खबी जुब की खोय जनजर जियतें करना। सकन्दर औ गदा दोऊ की एक जावें। तब पाये हुक लसा फला को यलद छामें है। = 9