पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५४४

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श्र शनि यग (२३) जिय' मरना भला है माहि भला बैराग हैt माह भला राग अस्त बिन कर लड़ाई। अठ पहर को मार चुके से ढेर न पाई है। रहै खेत पर ठाढ़ सशस को लेय उतारी। दिन दिन आगे चले गया जो फिरे पछारी है। पानो मरी नाह नाहि काफ़ैसे बखेलें। छहै पिनाला प्रेम गगन की खिड़की खोले ॥ पलटू क ी कसौटी चढ़े दाश पर दाग। जियतें मरना भला है नाह भ9 ला बैरण 11२३। सया=कहीं का न रहा। (२४) अपनी झोर निभाइयें हरि परे की जोति । हारि प' की जोति ताहि की लाज न कोई । कोहिम बहु बयार कदम आगे को दर्ज ॥ तिल तिल लागे घाब खेत से रन नहीं। गिरि गिरि उठे सम्हरि सोई है मरद सिपाही है! लरि लोगं भर पेट कानि कुल अनी न लायें। उसकी उनके हाथ बड़न से सब बनि नावे है। पलट सतगुरु नाम से सांची कीजे प्रति। अपनी ओोर निभाइये हारि पर की जीत है।२४। कानित==लाज, मयदा। (२५) रबा टू है रब्बा फार्मो कहण परदा खोल है। कहिये परदा खोल रवा मा बाको कीड़े। बात कहे दुइ दू क सैल मा पानी पी ॥