पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५४५

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५३२ संकाय उनसे रहिये दूरि बड़े वे लोग प्रधरसी। सुरतरह वेइ जबाब बवं न सरम सरसी है। कहैं मित्र को बात करें उसमन की करनी। मा को बिस्वास करें कंसॉ यहनी। पलटू री कपट को बोलें मीठी बोल। रात्रा टूट रबा फाटे कहिये परदा खोल २५। रक्षा =चाहै । रवाकण, तनिक भी। बाकी कीज--उठा ख। मलगंदला। रखता। धन्य हैं संत निज धाम सुख छाईि है, अनके काज को देह था। ज्ञान समझते के ठे संसार में, ले सकल तार का मोह टारा ॥ प्रति सब स सो करे मित्र औौ दुष्ष्ट से, भवी अरु बुरे वोउ सील धार दास पलटू कहै राम नfह , जाहूं संत जिन उक्त तारा १।। संत श्ररमको एक के जात्रिी, दूसरा भेद सा तनिक श्रादें । लाली क्यों छिपी है महदी के पात में, दूथ में घब यह ज्ञान ठातें है। फूल में बास ज्यों काठ में आग0 संत में रम यहि भांति जाने । दास पलटू कहे संत में राम है। राममें संत यह सय मानें ।।२। जॉन ।