पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५४६

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अनिक थग बिना सतसंग मा कथा हरिनाम की, बिना हरिनाम ना मोह भागे । मोह भारी बिना मुक्ति ना मिलेगी, मुक्ति बिन नाह अनुराग लाएं । बिना अनुरश से भक्ति नह मिलेगी, भक्ति बिनु प्रेम उर नाह जागे । प्रेम बिनु नाम ना नाम बिनु संत मा, पलट सतसंग बरदार मांगे है३t गगन में मगन हैं मगन में लगन है, लगन के बोच में प्रेम पानें। प्रेम में ज्ञान है ज्ञान में ध्यान है , ध्यान के धरे से तत्ल जाते हैहैं तत्त के जगे से लगे हरिनइम में, प) हरिनाम सतसंग लगें है। दास पलटू कहें भक्ति अबिरल मिले, रहै निरसक जब भ में भी मैं ।।४। म को घटामें गेंद एएं पटापट, गरज अकास बरसात होती । गगन के बोच में कूप है अधोमुख कूप के बीच इक वह सोती । उठत गुजार हूं क्रूज की गली में, फोरि अकाल तब चली जाती है सान सरोवर में सांसदल कवल है, दास पलटू हंस धुर्ग सोलो ३५।। नाचना नाजु तो कोलि पूंघट कंहै खल्केि नाच संसर देखें १।