पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५४९

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५३६ संकाय साथ परखिये रहनि में, छोर पखये रात है। पलटू सोना कंसे में, धूट परखिये बात ।६। पलदू तीरथ को चलाबीचे मिलिये संत । एक मुक्ति के खोजतेमिलि गइ मुधिर अनंत 1७। पलटू गुनना छोड़ियेचहै जो अतम सुक्ख । संसय सोइ संसार है, जरा मरन को दुक्ख ८। मरने वाला मरि गया, वे सो मरि जाय । समझदावे सोभी मौ, पलटू को पछिताय 11 चारि बरन को सेटि है, भधित चलाया मूल है। गुरु गोबिंद के बाग में, पल्टू फूला फूल ५१०' संत तुलसी साहिब संत तुलसी साहित्र वा ‘साहिब जी के लिए प्रसिद्ध है कि वे पूना के पेशवा बाजीव द्वितीय के बड़े भाई थे औरअपने पिता की गद्दी का अधिकारी होते हुए भी, उन्होंने उसके प्रति उदासीनता प्रकट कर अपना जन्मस्थान त्याग दिया और उत्तरी भारत में चले आए । इथर वे हाथरस नामक स्थान में रहा करते थे और कहा जाता है कि एक बार उनसे बाजीराव द्वितीय से भेंट भी हुई थी । परन्तु वे बहुत आग्रह किये जाने पर भी फिर पूना में जाकर नहीं ठहरे और अंत तक हाथरस में ही रह गए । उनके ‘घट रमायन' नाम के ग्रंथ में उनका अपने पूर्व जन्म में प्रसिद्ध गो७ तुलसीदास हना लिखा है, किंतु ऐसी बातें विश्वसनीय नहीं जान पड़तीं । वे हाथरस में रहते समय अपने शरीर पर केवल एक कंबल डाले हाथ में डंडा लेकर दूरदूर तक घूमते फिरसे चले जाते थे और सत्संग किया करते थे 1 वे बड़े स्पष्टवादी थे और किसी को फटकारने में तनिक भी संकोच नहीं करते थे। । उनके सत्संग की अनेक बातें संवादों के रूप में उनकी रचनाओं में लिखी पायी जाती।