पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५५२

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अंधुनिक युग ५३९ तुलसी तन मन बंधन सन्हाो, सोई साहिब सिरताज १४ निगनिःसंगएकाकी, परमात्मा । चेतावनी (५) बिन डगर मियां कह जाते हो। लक रघु दी संग भूलि फ्रे, परदेसी देख न पाते हो ध व होता अंबर में दिल, सुभा भरस भय खाते ही टेरूतहै। कुछ खोज खबर नहं रखते हो, नित नई नियामत त्रखते हो। नियां और जबर तक शी हो, दिल्ल पाक बदन हथ होस करो । भव भटकि भटकि दुख पाते हो १। कुछ ३लन इक्षित जातो, ये सरा स म को पहिचान । मियां नाप वृदी एहुद ब नहीं, यह तुरसिद फिर चीज कहां । बद चला चित्त चह'ते हो १२। हर बरूत तबाही सहते हो, हुमत लज्जा सब खोते हो । कर होस अदल बिच जायेंगेजब कुफर कूर से भागोगे । इ इसन बिना लो लरते हो ।३।। तुलसी तबक्का करने, यह जुलमी काफिर कर जेरे । पिछ अदल मुरीदो , बे. मझत्र हकीकत गाते हो ।४। दोपहंसा । सुभा=-देह ' नियामत ==स्वादिष्ट भोजन। जर . . . . अरसे सुखदुख सामने आने पर । हुमत =ोल । इसम== नाम है तब कक्षा , निपथ । रेखता (१) मन पैठ दरियाव बर अपमें । कल बिच लाभ में कमठ रखे है। १।