पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५५८

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अrलिक युग ५४५ बड़ी बड़ी स्वासा घटे, आसा अंग बिलाय । चह चमारी चूहड़ी, घर घर सबको साय १२। फू कर भसी, बोकर । चहडो=:भंगिन । सांझ निश्चलदास साधु निश्चलदास की जन्मतिथि का पता नहीं चलताने केवल इतना ही विदित है कि उनका जन्मस्थान पूर्वी पंजाब प्रांत के हिसार जिले की हासी तहसील का कुंगड़ नामक गांव था और वे जाति के विचार से जाट थे । उनका शरीर बहुत सुंदर और सुडौल था और उनकी बुद्धि तीन थी तथा उन्हें विद्योपार्जन की लगन भी थी । संस्कृत पढ़ने की लालसा से उन्होंनेअपने को ब्राह्मण बालक घोषित कर, काशी के पंडितों से सभी शास्त्रों का अध्ययन किया और व्याकरण, दर्शनसाहित्य, आदि में पारंगत होकर वे एक प्रकांड विद्वान हो गए । किंतु पहले से ही दादुपंथ में दीक्षित हो चुकने तथा जाट जाति के होने के कारण उन्हें काशी में विरोध का भी सामना करना पड़ा और अंत में वे वहां से चले आए : कहते हैं कि न्यायशास्त्र का विशेष अध्ययन उन्होंने नदिया (बंगाल) जाकर किया था और छन्दःशास्त्र प्रसिद्ध विद्वान् ‘रसपंगसे पढ़ा था । उन्होंने बिहौली में एक पाठशाला वेदांत पढ़ाने के लिए खोलो और यूं ही जाकर वहां के राज रामसिंह से बहुत सम्मान प्राप्त किया । उनके ग्रंथों में विचार सागर' तथा ‘वृत्ति प्रभाकर अधिक प्रसिद्ध हैं जिनमें उनके प्रखर पांडित्य एवं परिष्कृत विचारों का अच्छा परिचय मिलता है । उनका देहांत सं १९२० में हुआ था। कवित दीनता हूं यामि नर अपनो स्वरूप देकि, यूं तो शुद्ध ब्रह्म अज दृश्य को प्रकासो है । ३५