५४७ आधुनिक युग के अन्य अनेक सदस्य भी सहिब पंथ द्वारा प्रभावित थे । तदनुसार युवक शिवदयाल सिंह पर भी उसका बहत प्रभाव पड़ा और वे अपने को कमरे में बंदकर एकांत चितन के अभ्यासी हो गए। अंत में सं ० १९१७ की वसंत पंचमी के दिन से उन्होंने बाहर बैठ कर सत्संग करना और उप देश देना भी आरंभ कर दिया। उनका विवाह भी हुआ था किंतु कोई संतान न थी और जिस प्रकार उनके अनु.यायी उन्हें 'स्वामी' कहते थे उसी प्रकार उनकी पत्नी को राधा' कहा करते थे । सुत कम दशा कहे प्राप्त कर उन्होंने अपने छोटे भाई प्रतापसिंह द्वारा अपने लेनदेन के कारोवार को समाप्त करा दिया और जिनजिन कर्जदारों ने अपने जिनमें का रुपया खुशी के साथ दिया उनसे लेकर शेष लोगों के कागज फाड़कर फेंकवा दिया । नगर में सत्संग के कारण अधिक भीड़ होती देख वे पीछे उसके बाहर बैठने लगे थे और वह स्थान आजकल 'स्वामी बागके नाम से प्रसिद्ध है 1 उनका देहांत (० १९३५ की आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा के दिन हुआ था और उनकी समाधि उक्त स्वामी बाग में ही वर्तमान है । राधास्वामी सत्संग की साधना-संबंधी बातें अधिकतर गुप्त रखी जाती हैं और सर्वसाधारण को उनका परिचय नहीं है । उसके अनु यायी अपने गुरु के प्रति पूरी निष्ठा प्रदर्शित करते हैं और उसी के संकेतों पर आध्यात्मिक साधना का अभ्यास करते हैं । 'स्वामी जी महारा' की दो प्रधान रचनाएं प्रकाशित हैं। जिनमें से पहली पद्य में और दूसरी ग में है और दोनों के नाम ‘सारवचनहैं। संगृहीत पदों में रचयिता की गंभोर साधना, उसकी आध्यात्मिक दशा एवं द्रजन्य उल्लास का पता सर्वत्र मिलता है । भिन्न-भिन्न भीतरी ‘पदोंके, उन्होंने बहुत स्पष्छ एवं सजीव वर्णन किये हैं और गुरुमक्ति को उन्होंने अपनी सारी सफलता का श्रेय प्रदान किया है । किसी बात का पूरा विवरण
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