पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५६३

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५५० संताध्य हुई साफ बुनको सुधि पाई। नम थुना ले गगन चढ़ाई ॥३। गाली मनसा गाने कर्मा । चरखा चला कते सब भर्मा 1४१। सूत संरत बारोक निकासा । कुकड़ी कर किया शब्द निबासा ५। चित्त अटे रन टेर सुनाई । फेर फेर कवलन पर लाई गई। कल कर्बल लोला कहा गां। सुन सुन धुन निज मन समझा १७! । सूरत रंगो करे शब्द विलासर। तजी वासभा के चो आता । है। निकट पिंड सुन पेंठ समाई। सौदा पूरा किया बनाई We। राधास्वामी हुए दयाला । तफ़ा लिया खोला घट ताला ।१०। गालो =नी हुई रुई को गोलो जो चने पर कातने के लिए बनायी जाती है, पूनो । कुकड़ी कच्चे सूत का लपेटा हुआ लच्छा जो कात कर सकले पर से उतारा जाता है, अंटी । अटेरन सूत को ऑटो बनाने का लकड़ी का एक यंत्र, अथना। सुन पंठ=य की पैठ बा बाजार में ! (६) चनर मेरी मैली भभई । अब कापे जा लान है4१। घाट घाट में खोजत हारी । खूबियां मिला न सुजान ।२। नइहर रहूं कस पिया घर जाऊं । बहुत मरे मेरे मान 1३। नित निस तरठं पलपल तड़पृ। कोइ धोखे में री चूनर आन ।४। काम हुध्ठ और मन अपराधी । और लगावें कीचड़ साम ५। कासे कहूं सुने मह कोई । सब मिल करते मेरी हान १६ा। सखी सहेली सब जुड़ पाईं। लगों भेद बतलान ।७। राधास्वामी धुबिया भारी । प्राटे अय जहान ।८1। बहुत . . . . मान =प्रबतो पूरी फजीहत हो चुकी । सांम = गीला कर करके । हाल-=ानि, अनिष्ट्रबुराई। भेद =यहां पर उपाययुक्ति है।