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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५६४

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आधुनिक युग ५५१ साधना की सफलता (७) देव री सखी मोहि उसँग बधाई। अब मेरे ग्रानंद उर न समाई 1१। छिन छिन हरखू पल पल निरढूं । छवि राधास्वामी मोंसे कही न जाई १२। आरत थाली लीन सजाई। प्रेम सहित रस भर भर गाई ५३।। वरन सरन गुरू लाग बढ़ाई । अधिक बिलास रहा मन छाई ।४। कहा कहें यह घड़ी युहाई । सुरत हंसनो गई है भाई ५॥ शब्द गुरु धुन गगन सुनाई । घनी धार खैर से चल आई है।६)। टीम रोम और ग ग हाई । बरल बिनोद कहूं कस भाई ।। लिख लिख कर कुछ सैन जनाई । जानेंगे । मेरे जो गुरुभाई ! । राधास्वामी कहत बनाई। चार लोक में फिरी है दुहाई he। सत नाम धुन बीन बजाई । काल बलो अति मुरझा खाई १०। अलब अगम बोड मेहर कराई । राधास्वामी राधास्वामी दस दिखाई।।१। लाग-लगन, संबंध। बुर=केंद्र : बरन बिनोद-=वरण कर लेने पर जो अनंदातिरेक मिला। मेहर=दयां, कुपा । अनाहत नाद (८) मुरलिया बज रही। कोइ सुने संत घर ध्यान 1 १।। सो मुरली गुरु मोहि सुनाई । लगे प्रेम के बॉन है।२। fपंडा छोड़ घण्ड तज भागी । सुनी अधर में अपूरब तान ।५३। । पाया शबद मिली हसन से-। खंच चढ़ाई सुरत कमान ४। यह बंसी सत नाम बंस की । किया अजर घर अमृत पान !।५।' भंवर गुफा ढिग सोएँ बंसो ने झ रही मैं सुन सुन तान ।६. इस मुरली का मर्म पिछतो । मिली शब्द की खान ।७। गई सुरत खोला वह द्वारा । पहुंची निज स्थान ।। सत्त पुरुष धुन बीन सुनाई । अद्भुत जिनकी शान है।e॥ जिन जिन सुनी आम यह बंसी में दूर किया सब मन का मन 1१6t सुरत सम्हारत निरत निहात। पाय गई अब नाम निशान' 14११३।