पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५६५

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५५२ संतकाव्य अलख अगम और राधास्वामी । खेल रहो अब उस मैदाम 1१२? रलिय . . . रहो=अनाहत शब्द निरंतर हो रहा है । पाठांतर--निधान। अपना अनुभव (६) सोता मन कस जागे भाई । सो उपाव में कहं बखाम ।१। तकरण करे बर्त भी रखे । विद्या पढ़के हुए सुजात १२t जप तप संजम बहुविधि धारे । मौनी हुए निदान 1३। ) अस उपांव हम बहुप्तक कोन्हें m तो भी यह मन जगा न आन 1४है , खोजत खोजत सतगुरु पाये । उन यह जुबित कही परसान uxe सतसंग करो संत को सेबो । तनमन करो कुरबान १६ ॥ सतगुरु शब्द सुनो गगन चढ़ । वेत लगानो अपना ध्याम ७है। जागत जगत अब सन जागा । भूठा लग जहान म८। मन को मदद मिली सूरत को। बोनों अपने महल समान है। बिना शब्द यह मन नह जागे । कसे चाहे अनेक विधान है।१०। यही उपाय छांट कर पाया। और उपाय न कर परसान क११। बिरथा बैस बितावें अपनी १ लगे न कभी ठिकान है१२। संत बिना सब भटके डोलें । बिना संत मह शब्द छिन 1१३ ॥ शब्द शब्द में शब्दहि गाऊं । तू भी सुरत लगादे तान क१४r घर पार्टी चौरासो छूट । जन्म सरन की होवे हान 1१५। राधास्वामी कहें बुझाई । बिना संत सध भटके लोन क१६। कुरबान बलिदान, समर्पित । समान प्रवेश कर गए । म. ... परमास न्मश्रित न रहो । बैस =न । कोल क बाधा (१०) गूजरी चली भरम गगरी । श्याम ने रोकी पनघटवा है१। सखियन साथ उमंग से जाती । खोज लगातो धुन घटवा ।२है। अब क्या कई जोर नहिं चले । कैसे खर्चा घट पटया ।३है।