पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५७१

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५५८ संत-काव्य । शब्द डोर गह बढ़ता घट में, पहुंचा अगम नकारा हो ।५५६ आगे चल सुनो सारंग कंगरी, मुरली बीन सितारा हो १६। राधास्वामी मेहर से दीहा, निज पद अगम अपारा हो ।!। करारा द डे । अपनी बिरह दशा (४) सावन मास मेध घिर लाये । गरज गरज धुन शब्द सुनाये ।१। । रिमझिम बरय होवत भारी । हि बिच लागी बिरह कटारी है२। प्रीतम छाय रहे परदेसा। बूझा रही नह मिला संदेसा १३। रंन बिवस रहूं प्रति घबराती। कसक कसक मेरी कसके छाती म४t कासे कहूं को बरब न बूझे । बिन पिया बरस नहीं कुछ सूझे ५। चमके बीज तड़प उठे भारो। कस पार्क पिया प्रान भारी है६। रोबत बीते दिन और राती । बरद उठत हिये में बहु भfी ।७है। ढूंढत डूबत बन बन डोली । तब राधास्वामी की सुन पाई बोली । ८३, प्रीतम प्यारे का बिया संदेसा । शब्द पकड़ जाओो उस देसा 18 ।। सुरत शब्द मारग बरसाया। मन और सुरत अधर चढ़ाया ।१०। कर सतसंग खुले हिये नैना। प्रीतम प्यारे के सुने वहीं बैंना 1११॥ जब पहिचान मेहर से पाई। प्रीतम श्राप गुरु बन आई ।१२॥ बया कई मोहि अंग लगाया। दुबख वरद सब दूर हटाया है।१३। गया महिला राधास्वामी गाऊँ। तन मन वाहें बलबल जाऊँ ११४। भागे जर्म गुरु चरन निहारे ।अब कहें धन घन राधास्वामी प्यारे १५। चम के बीज कभीकभी रहकर खुध आ जाती रही तो। बोली संकेत । प्रीतम . .. आई-=प्रियतम इष्टदेव एवं गुरु में कोई भेद नहीं रह गया । (५) मेरे उठी कलेजे पीर घनी टक। बिन बरशन जियरा नित तरसेचरन पर रहे दुटि तनी 4१॥