पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आधु निक युग ५५ । नित्त पुकार करूह चरनन में, दरस देव मेरे पूरम धनो ।२॥ चटका जल्दी पाट खोलिये ध्यारे, को हुई देर घदी ।३। जब लग दरस ग पाऊँ घट में, तब लग रह मेरी बात बनी है। हद हुलास न आ के मन में, चिता में रहे बुद्धि सभी ५५। अब तो मेहर राधा स्वामी, चरनन को रडू सदा रिनी ५६। करो तनी=खिची हुईमार्केट से रिी=कृणी, कृत ! साधना का खुल (६) सुरतिया लाल हुई, चढ़ गगन निरख शुरु रूप ११। घटां संख गरज धुन सुनकरछोड़ दिया औौकूप 1२है प्रासा तृष्णा सन्सा जगकी, फटक बई ले गुरु का सूष ५३। सुम्न और महासुन्न के पारानिरखा सूरज सेत स्वरूप ।४है सत्त पुरुष का दर्शन करके, पहुंची राधास्वामी धाम अनूप 1५। सूरज==ज्योतिर्मय तब । वही (७) अमीकी बरखा हुई भारी । भाँज रही अतर सुत प्यारी औ१। सजो जद तह कबूलन क्यारी । शव गल फूलो फुलवारी १२ा। बासना त्यागी संसारी । मगन होय चढ़त अधर प्यारी से ३। गगन गरु दरशन कोनारी । हुआ मन चरन अधीना री है।४r सुम चढ़ निरख उजियारी से मिली हसन संग कर यासे ५। भंवर धन लाग रही ताी से मिला फिर सत शब्द सारी 11६है दया राधास्वामो को भारी । सरन दे चरन लगायारी । गुल=फूल । तारी=गहरा ध्यान, लीनता । सूरत की प्रगति (८) आज धिर आये बादल करे। गरज गरज घन गगन पुकारे १। रिमझिम बरसात घूद अभी की। बिजली चमक बट नैन निहारे है।२११