पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५७३

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५६ G संतकाय चहुं द्विस बखा होवत भारी / भीज रही सुर्त सुन झनकारे ३३। ॥ उमंग उमंग सुर्त चढ़ल अधर में । निरख रही घट जोत उजारे । बंटा संख धूम अब डाली। वकनाल शस हो गई पारे ३५। गुरु बरशाम कर अति ह रखनी । पहुँची जाय सुभ दस द्वारे ६। सस पुरुष के चरन परस कर । राधास्वामी अचरज दरश निहारे है७। होवत ==होता है , बस =दसवें । सुरत विवेक (७) सुरतिया मनन करत, सत गुरु के अचरज बोल ५१ । जो जो बचन सुनन्त सतसंग. में, सबक्री करती तोल क२ा। सार निफार हिप बिष धारासुरत शब्द भार अनमोल 1३। चढ़त अधर में निरख उधर में, चाँट रही घट धनको रोल १४। राधास्बाखी जैसी दिखाई लोला, कासे बेहूं में उसको खोल ५। ल=रोधकोलाहल । सुरत का अनुभव (१०) भूलत बंट में सुरत हिंडोला । बजत अनहद शब्द अमोला ५१। धुन की छोरी लगी घर में । सुरत निरत रहि झाँक उघर में १२ । सखी सहेली सब संग आाई । गगन भंडल में उमंग ससाई ।३। अमीौधार बरसत यह थी । हं रख हष भीजत खुत गोगे ।४। हंस हंसिनी जुड़ मिल जाये । राग रागिनी नई नइ गायें १५॥ देख नबीम बिलास मगन मन । ऊपर चढ़े सुन अधर शब्द धुन २६। शब्द हिंडोल बना सतपुर में । राधास्वामी झूलत जहां अधर में "७। द सन के जहें झूठंड सुहाये । अचरज सोभा कहो न जाये ५८। ‘जुड़ मिल दर्शम राधास्वामी करते । प्रोतम प्यार के चरमन पड़ते है। ओम सहित सब आरत गावें । छिनछिन राधास्वामी एवं रिझाये ।१०।। आरत आनी के समय की स्तुति ।