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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५७५

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५६९ संतकाव्य सतसंग वचन सुनू में कैसे, मन रहे अनेक तरंग उठाय क२३। चित चंचल मेरा चह्न दिस वे, सुरत शब्द में नहीं समय 1३है। निरभय होय भरमें संसारा, नई कामना नित्त जमाय ५४है। बिन राधास्वामी अब कोइ नह मेराजो यह बेड़ा पार लगाय १५१है उपदेश (१४) प्रेमी लीले रे खुब घर की, गुरु ढंग शब्द कमाय टेके। । शब्द धार खैर घर से नाई, वही धार गह अधर चढ़ाय 1१। वहीं धार गुरु चरन कहावे, वामें गहरी प्रीत बसाय 10२॥ गुरु स्वरूप को संग ले अपने शब्द शब्द से मिलता जाय 11३ या विधि चाल चले जो कोई, दिन दिन चरनन प्रेम बढ़!य है।४। घट में लीला लखें नियारीनित नवोन रस आनंद पाय ५। चढ़ चढ़ पहुंचे राधास्वामी धामादरश पाय भिज भाग सराय ।। नियांरी=न्यारी, अनुपम । सराय =सरहे । चेतावनी (१५) आम गुरु दरबार री, मेरी प्यारी सुरतिया टक३ जगत अगिन में क्यों तू जलती, हाबो शोतल धार से अमेरी०। सतसंग कर गुरु का हित चित से, जग भय भाव बिसार से मेरी०१२। विरह अनुराग धार हिपे अंतरतन मन चानन बार ी 'मेरी०।३॥ नाम दान सतगुरु से लेकर, करनी करो सम्हार री मेरीo। ।४। विमल प्रकाश लखो धठ अंतर, सुन अनहद झकार री ।मेरी० से IX। राधास्वामी सरन थार हिमें , करले जीव उपकार ने मेरी०।६। नेक सलाह (१६) अपर. चढ़ परख शब्द की धार टेका। गुरु बयाल तोहि मरम लखावें, बच्चन सुनो उन हिये घर प्याk 1१।