पृष्ठ:संत काव्य.pdf/५७६

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आधुनिक युग ५६३ बिरह अंग लेकर अभ्यनसा, खोज करो तुम घट धुन सार २५ गुरु स्वरूप को अगुआई करके, धूत सुन चलो कंज के पार ५३ सहस कंवल में घंटा बजेगगन भाफ सुन धुन कार (४। सुम्भ झिाखर चढ़ सहा सुन पर, वर गुफा मुरलो झनकार ५। सत्त शब्ब का धरकर ध्याना, सत्त लोक धुन बीन सभ्हार ६६। अलख अगम के पार निशाना, राधास्वामी का कर दीदार ७है प्यारे भक्तिस्वरूष (१७) सन मन धन से भक्ति करो री टेक।। कोरी भक्ति काम नई , याते हिरों में प्रेम भरोसे ११।' परम पुरुष राधास्वामी चरनन में, श्री सतसंग में प्रीत घरोरी ।२It दया कर गुरु भेद बतादें, तब खून सुरें अधर चढोरी है। दीन गरीबी धार हिये में, उमंग उग गुरु चरम पड़ोरी 1५४। राधास्वामी मेहर करें जब अपनी, अंब साशर से सहज तरोरी ५५है। भरोरीपूर्ण कर लो। प्रेममहव (१८) प्रेम बिन चले न घर की चाल ।टेक।। सतसंग करे समझ तब , गुरु चरनन में प्रीत सम्हाल 14१। गुरु भक्त्ती की रोत सम्हारे, छोड़े जग की चाल ढाल ।२॥ शुरु स्वरूप का धारे ध्याना, शब्द सुने तक माया ख्याल ३। घट में देख विमल प्रकाशा, संगल होय सुन शब्द रसाल १४। प्रीत प्रतीत बढ़े तथ दिन दिन, पवें राधास्वामी बरस विशाल 1५है कठिन साधनापथ (१४) शुरु 'यारे का मारग झोना, कोइ गुरुमुख जाय।टेक। मन इंद्री को रोक नंबर में, भोग बासना दूर हटाय, मन मान नसाय १११।